मित्र कैसे हो

मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी सभी एक न एक साथी को तलाशते हैं जो कभी कभी या प्रति दिन उसके साथ समय व्यतीत कर सके घूमना फिरना नवीन विषयों पर चर्चा आदि आपस में कर अपनी चेतना में नव संचार से अभिभूत हो , भगवान श्री राम श्री हरि कृष्ण भी राज्य सुख छोड़कर सच्चे और प्यारे मित्र की प्रतिक्षा करते थे श्री राम को वनवास काल में निषाद राज केवट हनुमान सुग्रीव विभीषण आदि सच्चे मित्र मिले जिन्होंने माता सीता की खोज और रावण से युद्ध के समय अपनी सम्पूर्ण सेना के साथ कदम से कदम मिला कर भगवान श्री राम का साथ दिया और विजय श्री भी उन्हे ही मिली यह सत्य रामचरित मानस में विस्तार से वर्णित हैं,

श्री कृष्ण के चरित्र दर्शन से मनुष्य को अनुपम सुख मिलता बाल लीला मनोरम दृश्य से परिपूर्ण हैं जिसे पढ़कर सुनकर हिन्दू ही नहीं अन्य धर्म के मानने वाले भी सुख पाते हैं, किशोर अवस्था आते ही ईश्वर के अवतार श्री हरि कृष्ण ने अपने दुष्ट मामा कंस को मार कर अपने माता पिता को कैद से छुड़ाया और परिवार को सुख दिया राज्य सिंहासन पर बैठते ही प्रजा को एक जुट होकर कार्य करने के लिए प्रेरणा दी पांडव और कौरव में युद्ध न हो इसके लिए भी श्री कृष्ण अत्याधिक प्रयत्न शील रहे शकुनी की कुटिल नीति के कारण युद्ध टल न सका, श्री कृष्ण जी और भाई बलदाऊ इस युद्ध में तठस्थ रहें उन्होने अपनी सेना कौरवों को पांडव को रथ और सारथी के रूप में श्री कृष्ण जी मिले जब युद्ध स्थल में पांडव के सेनापति श्री अर्जुन कौरवों की विशाल सेना और परिवार के प्रमुख पूजनीय और आदरणीय बंधु और बांधवों को देखकर विचलित हो जाते हैं और करुण स्वर में श्री कृष्ण से कहते हैं

हे तात यह मैं क्या देख रहा हूं एक ओर पितामह भीष्म गुरुजन बंधु बांधव विशाल सेना के साथ खड़े हैं और दूसरी तरफ हम पांडव सेना में सभी एक से एक बलशाली पराक्रमी योद्धा हैं भीम और अर्जुन के समान शूरवीर काफी योद्धा हैं

किंतु स्वजनों के युद्ध में मारे जाने की कल्पना मात्र से हाथ पैर फूल जाते हैं श्री कृष्ण ने गीता में कहा है हे अर्जुन नपुसंक ना बनो युद्ध स्थल पर वीर की तरह युद्ध करो

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के सभी शंका का समाधान किया है

एक अच्छा मित्र अपने मित्र को हमेशा मार्गदर्शक की रास्ता दिखाते हैं वही मित्रता जन्म जन्मांतर तक अमर हो जाती हैं

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