Monthly Archives: September 2014

सम्मान पाने की चाह ही बनती है संकट का कारण-हिन्दी चिंत्तन लेख

TRUE,BUT WE ARE NOT REMEMBER,,,

दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका

            मानव स्वभाव है कि वह दूसरे पर अपनी श्रेष्ठता दिखाना चाहता है।  इसके लिये वह कई उपाय करता है। इनमें एक है सर्वशक्तिमान के प्रति भक्ति के स्वरूप के आधार पर स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना। विश्व के करीब करीब सभी धर्मों में धरती के बाहर स्वर्ग की कल्पना की चर्चा की जाती है हालांकि भारतीय धर्मों में भी कहीं कहीं इस तरह की चर्चा है पर श्रीमद्भागवत गीता में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इस तरह का विचार अज्ञान का प्रमाण है।  यही कारण है कि  हमारे तत्वज्ञानी मानते हैं कि अगर आदमी संयम के साथ जीवन बिताये तो वह इसी धरती पर ही सुख के साथ जीवन बिता सकता है जो कि स्वर्ग भोगने के समान है।  मगर कुछ लोगों को इस बात की बेचैनी रहती है कि वह समाज में श्रेष्ठता साबित करें। वही दूसरों के सामने अपनी भक्ति का प्रचार करते हैं।

संत…

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Pompeii Under Siege

घुमक्कड़ स्वभाव के से जीवन में सामंजस सीखना
चाहिए

Travel Tales of Life

Pompeii

Almost two thousand years ago Pompeii, a bustling port of 20,000, fell silent to the power of Mount Vesuvius. Having been badly damaged in an earthquake 17 years prior, 30 feet of hot volcanic ash would silence the then unfortunate souls of Pompeii once and for all.

Today 2.5 million visitors rain down on Pompeii annually. As two of the curious onlookers at the grim scene we really can not point fingers at the potential extinction of the site from foot traffic and nature’s elements.

We felt as though a million or so tourists showed up the same day as we to the historic site. Under the blazing sun and dripping humidity we dodged swarms of tour groups. If you thought cycling in Rome might be dangerous try getting in the path of a tour guide herding his potential tip paying guests in ancient Pompeii.

Map 2 (Pompei)

1.Rome 2.Pompeii 3.Positano 4.Cortona 5.Montepulciano 6.Bagno Vignoni 7.San Casciano 8.Sorano  9.Orvieto 10.Camogli 11.Nice

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अनिवार्यता और संयोग – १

SUNDER ,,

समय के साये में

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने भौतिकवादी द्वंद्ववाद के प्रवर्गों के अंतर्गत ‘कार्य-कारण संबंध’ के प्रवर्गों पर चर्चा का समापन किया था, इस बार हम ‘अनिवार्यता और संयोग’ के प्रवर्गों को समझने का प्रयास शुरू करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।


भौतिकवादी द्वंद्ववाद के प्रवर्ग
अनिवार्यता और संयोग – १

( necessity and chance ) – 1

732760-caveman-paintings-chauvet-cave-franceसामान्यतः संयोग ( chance ) उसे कहते हैं, जो घट भी सकता है और नहीं भी घट सकता है तथा ऐसे भी घट सकता है और वैसे भी घट सकता है। अनिवार्य ( necessary ) उसे कहते हैं, जिसे अवश्यमेव घटित होना है या जो घटे बिना नहीं रह…

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