TRUE,BUT WE ARE NOT REMEMBER,,,
दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
मानव स्वभाव है कि वह दूसरे पर अपनी श्रेष्ठता दिखाना चाहता है। इसके लिये वह कई उपाय करता है। इनमें एक है सर्वशक्तिमान के प्रति भक्ति के स्वरूप के आधार पर स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना। विश्व के करीब करीब सभी धर्मों में धरती के बाहर स्वर्ग की कल्पना की चर्चा की जाती है हालांकि भारतीय धर्मों में भी कहीं कहीं इस तरह की चर्चा है पर श्रीमद्भागवत गीता में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इस तरह का विचार अज्ञान का प्रमाण है। यही कारण है कि हमारे तत्वज्ञानी मानते हैं कि अगर आदमी संयम के साथ जीवन बिताये तो वह इसी धरती पर ही सुख के साथ जीवन बिता सकता है जो कि स्वर्ग भोगने के समान है। मगर कुछ लोगों को इस बात की बेचैनी रहती है कि वह समाज में श्रेष्ठता साबित करें। वही दूसरों के सामने अपनी भक्ति का प्रचार करते हैं।
संत…
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