अपने ज्ञान को ध्यान में बदलो—(प्रवचन—चौथा) दिनांक 3 अगस्त, 1986, 30 प्रातः सुमिला, जुहू, बंबई प्रश्नसार: 1—परसों ही आपने कहा कि अपने को जाने बिना अर्थी नहीं उठने देना। यह चुनौती तीर की तरह हृदय में चुभ गयी। हम कैसे शुरू करें? 2—रजनीशपुरम कम्यून से लौट कर मैं बहुत अकेली, खोई—खोई सी, कन्फ्युज्ड अनुभव कर […]